Important Role of Music in Modern Lifestyle : 20 वीं शताब्दी का आरम्भ न केवल भारत के स्वतन्त्र युग का क्रान्ति काल रहा है बल्कि संगीत कला की दृष्टि से भी एक अनोखी क्रान्ति का युग माना जा सकता है। आज संगीत का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि अधिक से अधिक लोग उसे सुनते, समझते और सीखते हैं। संगीत महफिल, संगीत सम्मेलन, आकाशवाणी, दूरदर्शन, रिकार्ड, टेपरिकार्ड के कारण अत्यन्त सहज होकर घर- घर फैल गया है।
Music in Modern Lifestyle : आज के दौर में संगीत के विभिन्न पहलूओं पर विभिन्न पुस्तकें, ग्रन्थ एवं शोध कार्य प्रकाशित हो रहे हैं। बन्दिशों की स्वरलिपियाँ, नृत्य के तोड़े-टुकडे तथा तबला, परवावज आदि के कायदे-पेशकारा लिखित रूप में उपलब्ध है। जिस गायकी या साज को सुनने के लिए आज से 40 वर्ष पूर्व तक एक घरानेदार कलाकार को सहमत करना कठिन था,
वर्तमान में उसी गायकी या बाज को हम सहज रूप से रेडियो, टेलीविजनों या आडियो-विडियो रिकाडों में बार-बार देखते-सुनते हैं। संगीत शिक्षण के क्षेत्र में भी उपरोक्त साधनों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान माना जा रहा है। ये साधन भले ही गुरु का स्थान न ले सकने में सक्षम हों परन्तु एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी के लिये सहायक तो सिद्ध हो ही सकते हैं।
History of Music in Modern Lifestyle
भारतीय कला संस्कृति का अपना एक इतिहास रहा है। हमारी कलाएँ सदा से ही ‘सत्यम शिवम् सुन्दरम्’ से प्रेरित रही है। भारतीय परिपेक्ष्य में संगीत को सर्वोत्तम उत्कृष्ट कला के रूप में जाना जाता है। ललित कलाएँ मानव के साथ जुड़ी है। मानव की कलात्मका अभिव्यक्ति है ये कलाएँ। कला की रचना ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा के आधार पर होती है। ईश्वर की महती सृजना शक्ति मनुष्य में परिमोट प्ररिमित है किन्तु है अवश्य।
संगीत कला में कलाकार की प्रतिभा के साथ-साथ गायक को मधुर कंठ भी ईश्वरीय देन ही होता है। कलाओं की साधना का मुख्य लक्ष्य आनंद की प्राप्ति करना ही है। आनंद का माध्यम जितना सुक्ष्म होगा, आनंद का स्तर भी उतना ही ऊँचा होगा। ललित कलाएँ मनुष्य के सौदर्य बोध की विकसित अवस्थाओं की परिचायक है। भावना की अभिव्यक्ति के सुक्ष्म तत्वों से युक्त होने के कारण ही संगीत ललित कलाओं में उत्कृष्ट कला है।
Music in Modern Lifestyle : सरस ब्रह्म की रसवत्ता हीं संगीत है, संगीत ईश्वरीय वरदान है। संगीत एक ललित कला है। अर्थात् सुन्दर और मनोहर। ‘संगीत कुं न मोहयेत” अर्थात् संगीत से कौन मोहित नहीं होता। पाँचों ललित कलाओं में संगीत ही एक ऐसी कला है जिसे किसी बाह्य साधनों एवं उपकरणों की आवश्यकता नहीं रहती। इसलिए संगीत द्वारा प्राप्त आनंद अन्य सभी से उच्च स्थान पर माना गया है। गायन वादन और नृत्य की समन्वयात्मक संज्ञा संगीत है।’
आधुनिक जीवन शैली के इस तनावपूर्ण परिवेश में सभी लोग तनावमुक्त रहना चाहते है और उनकी यह कोशिश भी जायज है क्योंकि बिना उपयुक्त समायोजन के व्यक्ति, घर, समाज, पेशा किसी भी जगह सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है। इस अभूतपूर्व समायोजन में संगीत का भी महत्वपूर्ण योगदान प्रतीत होता है।
Music in Modern Lifestyle Overview
समायोजन जिसका शाब्दिक अर्थ है उपयुक्त होना, उचित होना अनुकूल बनाना, व्यवस्थित करना, सुधारना तथा अनुरूप होना। समायोजन उपयुक्त दुरूस्त हितकारी अथवा स्वास्थ्यकर उस हद तक होगा, जब तक वह अपनी अवस्थाओं, परिस्थितियों और व्यक्तियों के बीच समन्वित संबंध स्थपित करता है, जो उसका भौतिक और 3/7 क वातावरण होता है।
वातावरण के साथ प्रभावी ढंग से व्यवहार करना ही समायोजन कहलाता है। मनुष्य अत्यधिक विवेकशील प्राणी है, जिसका निर्धारण बुद्धि से होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि, व्यक्तित्व तथा सीखना इन महत्त्वपूर्ण घटकों में भी समायोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इन कारकों के अभाव में व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है। इन कारकों के कारण व्यक्ति अपने जीवन के कठिन से कठिन चुनौतियों का सरलतापूर्वक संपादन कर पाता है। मनोविज्ञान का विषय वस्तु प्राणी है और प्राणी का प्रमुख कुशलता समायोजन है और समायोजन में संगीत का भी काफी महत्व है।’
Music in Modern Lifestyle : संगीत जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी व्यक्तियों को पसंद आता है, कोई इसे व्यक्त करता है तो कोई अत्यक्त स्वरूप में ही आनंद लेता है। आज के इस सूचना प्रौद्योगिकी के परिप्रेक्ष्य में संगीतकार का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ है। फिल्म चित्रहार, सांस्कृतिक कार्यक्रम भजन संख्या महोत्सव, नाटक, सेमिनार में संगीत का उपयोग काफी होता है जिस कारण संगीत का व्यापक प्रचार-प्रसार हो चुका है।
अक्सर लोग जब तनाव में होते है तो सिनेमा टीवी या संगीत के कार्यक्रम को देखकर अपना तनाव दूर करने का सफल कोशिश करते है। संगीत मनाव को भाषा देने के साथ-साथ अनुभूतियों के विनिमय में भी मदद करता है। प्राणी की उत्पत्ति सांगितिक परिवेश एवं सांगितिक तत्वों से परिपूर्ण होता है।
Music in Modern Lifestyle relation to woman
संगीत तथा समायोजन में अनुरूप संबंध है जो व्यक्ति संगीत को जल्द समझ ले या संगीत की क्षमता उसमें हो तो वह व्यक्ति समायोजन भी अच्छे ढंग से कर सकता है। जैसे एक सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ के बातों को सुनकर अनियंत्रित भीड़ भी नियंत्रित हो जाता है। जिस भीड़ को बहुतेरे पुलिस बल भी नहीं नियंत्रित या शांत कर पाते है उस भीड़ को एक अच्छा कलाकार अपने निष्पादन से शांत कर देता है।
इस तरह का समायोजन शीलता सिर्फ संगीत में ही संभव है। समाज में बढ़ती प्रतियोगिता की भावना कम साधनों एवं आत्मकेन्द्रिता की प्रवृत्ति के कारण लोगों में तनाव की समस्याएँ देखी जाती है। इसका सामना करने के लिए समायोजन का होना अति आवश्यक है। समायोजन में संगीत का स्वर संजीविनी का कार्य करता है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली, माता-पिता की अवास्तविक आकांक्षाएँ के कारण भी बच्चे अपने जीवन में सफलतापूर्ण समायोजन नहीं कर पाते है। फलतः मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाते है। परन्तु संगीत का अभ्यास करने से मानसिक तनाव में काफी कमी होती है।
Music in Modern Lifestyle : संगीत नाद-योग है। संगीत के विभिन्न स्वरों के अनुसार ही सूक्ष्म नाडियों (सूक्ष्म शरीर) में कुण्डलिनी के चक्र है। संगीत नाड़ियों को स्फुरित करता है और उन्हें शुद्ध पवित्र करता है। संगीत से नाड़ियों में सुप्त आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत हो जाती है। नाड़ियों का इस प्रकार का शुद्धिकरण न केवल मानसिक शान्ति तथा सुख प्रदान करता है, अपितु यह साधन को दीर्घकालीन योग साधना में भली प्रकार सहायता प्रदान करता है, अपितु य साधन को अपने जीवन उद्देश्य लक्ष्य की प्राप्ति सहज में हो जाती है।
आधुनिक वातावरण में जिस प्रकार समय का समायोजन जरूरी है उसी प्रकार से शरीर को स्वस्थ रखना भी अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक प्राणी के शारीरिक (कायिक) तथा मानसिक, स्वरूप, स्वभाव पर मधुर संगीत राग अमिट प्रभाव डालते है। वासनाओं तथा वृत्तियों रूपी सहस्रों फण साधक के रहस्यमय मन में संगीत के प्रभाव से शान्त पड़े रहते है। संगीत के स्वर-माधुर्य से शान्त मन साधक के अधीन हो जाता है। तब साधक अपनी इच्छानुसार नियंत्रित, शान्त मन पर शासन कर सकता है।
Music in Modern Lifestyle relation to Artist
संगीत कला के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यह ललित कला, महफिल की आनन्ददायक वस्तुओं का आभूषण मानव के मनोरंजन का साधन, संतों के लिए आत्मानंद की मार्ग दर्शक प्रेमियों के जीवन की मित्रा, विरहाग्नि से पीड़ित व्यक्तियों को सांत्वना देने वाली एकांतवासियों की मित्र तथा सहायक और अपाहिज एवं आपादग्रस्त प्राणियों को सहचरी और प्रेमिका ही नहीं, अपितु इस प्रकार के सैकड़ों गुणों के अतिरिक्त इस कला में और भी अनेक विशेषतायें है जो अप्रत्यक्ष तथा अदृश्य होते हुए भी सहृदयों को अस्वीकार नहीं है।
Music in Modern Lifestyle : नाद सिद्धि भी मन सिद्धि के समान प्रक्रिया है। यह साधक व स्वर के आपसी सम्बन्धों पर निर्भर है कि वह किस प्रकार अपने भविष्य का निर्धारण करे। यह नाद भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक (तम् रंज् सत्) अर्थात् प्रेयस से श्रेयस तक तीनों उपलब्धियाँ प्रदान करने में सक्षम है। आत्मा का मूल स्वभाव नाद ही है। जिसमें स्थापित होकर आत्मा प्रत्येक दुःख व्याधि, सहोदर, नादानंद के अवलम्बन से मोक्ष्य मार्गी बनती है इसलिए नाद सभी सर्वशक्तिमान एवं सभी पर प्रभावी है।
सामान्यतः सभी लोग अवसाद के क्षणों से गुजरते है। प्रियजन का निधन, निराशा, दुर्घटना, असफलता, अपराध भाव, हीनभाव आदि से व्यक्ति अवसाद ग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार कुछ अपेक्षित परिस्थितियाँ व्यक्ति में तनाव भर देती है। इसी तरह कुछ मानसिक अवरोध भी हो सकते है। संगीत की लय से मानसिक लय को व्यवस्थित किया जा सकता है। आज के उद्योगोन्मुख वातावरण में मानव जैविक विकास में ही मग्न है किन्तु मेरा मानना है कि जैविक विकास और सांस्कृतिक विकास एक ही प्रक्रिया के अंग है।
Music in Modern Lifestyle effect on human body
सांस्कृतिक विकास एक ही प्रक्रिया के अंग है। सांस्कृकि क्षमता का विकास मानवीय विकास की तुलना में कम महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि सही अर्थो में सांस्कृतिक विकास ही मानवीय विकास है। इस प्रकार आधुनिक जीवन शैली को सहज बनाने के लिए संगीत, शांत-चित, अच्छी एकाग्रता, बेहतर स्पष्टता और बेहतर संवाद कायम करता है जिससे जीवन और सहज बन सके। संगीत के सतत् अभ्यास से व्यग्रता का कम होना, भावनात्मक स्थिरता में सुधार, रचनात्मकता में वृद्धि प्रसन्ना में सवृद्धि, मानसिक शांति एवं स्पष्टता में लाभ होता है।
Music in Modern Lifestyle : वर्तमान सन्दर्भ में शास्त्रीय संगीत के विकास के लिये दूरदर्शन, आकाशवाणी, संगीतसम्मेलन, संगीतिक परिचर्चाएँ, संगीतिक पत्र-पत्रिकाये, चित्रपट संगीत आदि सभी विधायें अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिकायें निभा रहे हैं। हमारी सरकार को चाहिये कि संगीत के स्तर को ऊँचा उठाने के लिये प्रतिभावान विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्ति हेतू ऐसी संस्थाओं की स्थापना की जाये, जहाँ कलाकारों को अपने निर्वाह के साधन उपलब्ध हों, अर्थात वेआर्थिक रूप से चिन्तामुक्त हों।
ऐसी संस्थाओं में विद्यार्थी श्रेष्ठ गुरूओं से शिक्षा प्राप्त कर एक अच्छा कलाकार बन सकता है। ऐसा प्रयास कोलकता की “आई०टी० सी० रिसर्च अकादमी” द्वारा हो रहा है। निसन्देह ही वहां से अच्छे कलाकार निकलने की संभावना है व कई निकल चुके है। अभी हाल ही में पं० हरि प्रसाद चौरसिया जी ने भी संगीत शिक्षा की गुरू शिष्य प्रणाली को ध्यान में रखते हुये पुने में “गुरूकुल” नामक संस्था प्रारम्भ की है, जो अति सराहनीय कार्य है।