Dispute History of Gyanvapi 1194-2024: The Gyanvapi Mosque, located in Varanasi, India, has a disputed history dating back centuries. Here’s a brief overview of its history from 1194 to 2024:
ज्ञानवापी मस्जिद, जो भारत के वाराणसी में स्थित है, का विवादित इतिहास सदियों से चला आ रहा है। यहां ज्ञानवापी के इतिहास का एक संक्षिप्त अवलोकन है 1194 से 2024 तक:
- मूल मंदिर का निर्माण (1194): स्थल पर मूल मंदिर एक हिंदू देवालय था जो भगवान शिव को समर्पित था, जिसे 1194 में हिंदू राजा, काशी के राजा मन सिंह के शासनकाल में निर्मित माना जाता है।
- नष्टि और मस्जिद का निर्माण (17वीं शताब्दी): मुग़ल काल के दौरान, सम्राट औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों का निर्मूलन कराया, जिसमें ज्ञानवापी के स्थल पर स्थित मूल मंदिर भी शामिल था। इसके स्थान पर, 1669 में ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ।
- विवाद और कानूनी लड़ाई (18वीं-20वीं शताब्दी): सम्राट औरंगजेब के बाद, इस स्थल पर विवाद बढ़ा और यह सम्पूर्ण युगों तक चला आया। विभिन्न हिंदू समुदायों ने दावा किया कि मस्जिद का निर्माण मूल काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस के बाद हुआ था।
- स्थिति क्रम आदेश (1998): 1998 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक स्थिति क्रम आदेश जारी किया, जिसमें यह निर्धारित किया गया कि विवादित क्षेत्र में कोई धार्मिक गतिविधि नहीं होनी चाहिए जब तक मामला समाप्त नहीं होता।
- बाबरी मस्जिद का ध्वंस (1992): 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढहने ने भारत में समूचे समाज को व्यापक रूप में आपसी टकराव को बढ़ावा दिया, जिसमें वाराणसी में भी ज्ञानवापी का विवाद शामिल था।
- चल रहा विवाद (21वीं शताब्दी): ज्ञानवापी के उपरांत स्थान और स्थिति के बारे में विवाद 21वीं सदी में भी बना रहा है, जहां विभिन्न पक्ष अपने दावों और कानूनी समाधान के लिए प्रयासरत रहे हैं।
- हाल की विकास (2020 के दशक): ज्ञानवापी मस्जिद के स्वामित्व और स्थिति पर कानूनी लड़ाई 2020 के दशक में भी जारी रही। हालांकि, 2022 के बाद की विशेष विकास उपलब्ध नहीं हैं।
सम्ग्र रूप से, ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास धार्मिक, सांस्कृतिक, और कानूनी विवादों से घिरा हुआ है जो सदियों तक चले आए हैं, जो भारतीय समाज में व्यापक तनाव और जटिलताओं को प्रतिबिंबित करते हैं।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024-अविनाशी काशी की नाभि ज्ञानवापी
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 – भारतीय सनातन परंपरा में ज्ञान का वास्तविक अर्थ परमतत्व के बोध से है , जो मोक्ष प्रदायक होता है । इसी परंपरा का संपोषक है श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में अनशवर रूप में विद्धमान ज्ञानवापी नाम से विश्वविश्रुत पवित्र स्थल ।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 – ‘ज्ञानवापी’ शब्द में ज्ञान का अर्थ परमतत्व और वापी का अर्थ बावरी या तालाब से है । मोक्ष्य प्रदान कराने वाला परमतत्व स्वरूप यानी शिवतत्व का ज्ञान कराने वाली यह वापी ही ‘ज्ञानवापी’ के नाम से विभिन्न पुराणों में यथास्थान उद्धृत है। काशी विद्युत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार लिंग पुराण में कहा गया है –
‘ देवस्य दक्षिणे भागे वापी तिष्टाथी मोक्षदा।
तस्या शंचोदकम पितवा पुनर्जन्म न विधते।।’
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं आदिदेव भगवान शिव ने अपने ज्ञान स्वरूप का प्रतिपादन करने के लिए ईशान रूप में त्रिशूल से भूमि का उत्खनन कर जल निकालकर ज्ञानप्रप्ति हेतु अविमुख्तेश्वर स्वरूप की आराधना की ।
ज्ञान प्राप्ति में सहायक यह वापी ही काशी में ज्ञानवापी के नाम से प्रसिद्ध हो गई ।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 – भगवान शिव अपने विभिन्न स्वरूपों एवं नामों के अंतर्गत अष्टमूर्ति के नाम से भी प्रसिद्ध हैं जिससे उनको ‘ अष्टमूर्तिनिर्धीशशच ज्ञानचक्षुस्तपोमय:’ कहा गया है । इन अष्ट मूर्तियों में भगवान शिव की शीतिमूर्ति, जलमूर्ति, अग्निमूर्ति, वायुमूर्ति, आकाशमूर्ति, यजमानमूर्ति, चंद्रमूर्ति, एवं सूर्यमूर्ति तंत्र शास्त्रों में वर्णित है । काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री तथा बीएचयू ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं, ‘ इनमे से जलाई भगवान शिव की मूर्ति ही इस ‘ ज्ञानवापी में समाहित है जिसका स्पष्ट वर्णन स्कंदपुराण में प्राप्त होता है ।’
कहा गया की:
‘ योष्टमूर्तिमहादेव पुराणों परीपट्ठयते ।
तस्यै वांबुमईमूर्ति: ज्ञानदा ज्ञानवापिका।।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 विश्वनाथ का वैभव लौटाने का प्रयास
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 – 1490 में सिकंदर लोदी द्वारा ध्वस्त किया गया विश्वेस्वरनाथ मंदिर काफी भव्य था । इस मंदिर में पांच भव्य मंडप थे ।
ध्वस्त किए जाने के बाद भी उस स्थल पर 1585 तक यानी 95 वर्षों तक कोई निर्माण नहीं हुआ था । यही न तो मंदिर ही रहा , न मस्जिद की बनी थी । संस्कृत के प्रकांड विद्धवान नारायण भट्ट के आग्रह पर राजा टोडरमल व मानसिंह ने 1585 ई. में जब विश्वेश्वरनाथ मंदिर का निर्माण कराया तो पुराने मंदिर का मानचित्र अपने सामने रखा था । टोडरमल ने बचे मंडपों की मरम्मत कराकर उसे और भव्य स्वरूप प्रदान किया ।
इतिहासकार डॉक्टर मोतीचंद्र ने अपनी पुस्तक ‘ काशी का इतिहास ‘ में लिखा गया है कि पांचवे मंडप की माप 125 गुणा 35 फूट की थी । यह रंगमंडप था और यहां धार्मिक उपदेश हुआ करते थे । टोडरमल ने मंडप की मरम्मत करा दी और मंदिर की कुर्सी सात फीट और ऊंची उठाकर सड़क के बराबर कर दी गई ।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 – 128 फूट थी मंदिर की ऊंचाई । मंदिर के चारों कोनों पर 12 फूट के उपमंदिर थे । नदीमंडप मंदिर के बाहर था । 128 मंडपों और मंदिरों के शिखर थे, जिनकी ऊंचाई 64 फूट और 48 फूट थी । मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ था, जिसमें अनगिनत देवी – देवताओं के मंदिर थे ।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 -16वीं सदी यानी 1585 में राजा टोडरमल ने जिस विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया वह चौखुंटा और काफी भव्य था । उसकी प्रत्येक भुजा 124 फूट की थी । मुख्य मंदिर बीच में 32 फूट के गर्भगृह में जलधारी के अंदर था । गर्भगृह से जूते हुए 16 गुणा 10 फूट के चार अंतर्गृह थे। इनके बाद 12 गुणा आठ फीट के छोटे अंतर्गृह थे जो चार मंडपों में जाते थे । पूर्वी और पश्चिमी मंडपों में दंडपाणी और द्वारपालों के मंदिर थे ।
दो महारानियों का अवदान
अठारहवीं सदी की दो महारानियां अहिल्याबाई और रानी भवानी का विशेष अवदान काशी कोमप्राप्त है । इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर का सबसे बड़ा योगदान ध्वस्त पड़े काशी विश�
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 प्रबल प्रतिरोध असंख्य बलिदान
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर पर जब-जब आक्रांताओं का हमला हुआ, बहुत से अनाम धर्मरक्षकों ने बलिदान दिया। शाहजहां के शासन काल में भारत आए ब्रिटिश यात्री और व्यापारी पीटर मंडी के यात्रा वृत्तांत ‘द ट्रेवेल्स आफ पीटर मंडी’ में ऐसा ही वर्णन मिलता है।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 -आगरा से पटना जा रहा पीटर मंडी तीन सितंबर 1632 को मुगलसराय (अब दीनदयाल उपाध्याय नगर) पहुंचा तो वहां किसी को मृत्यु के बाद लटकाया जा रहा था। पीटर मंडी ने जानकारी की तो पता चला कि मुगल बादशाह शाहजहां ने विश्वनाथ मंदिर सहित काशी में बने व बन रहे अन्य मंदिरों को ध्वस्त करने का हुक्मनामा इलाहाबाद के सूबेदार हैदर बेग को जारी किया था। हैदर बेग ने इस हुक्मनामे को पूरा कराने के लिए अपने चचेरे भाई को सैन्य बल के साथ भेजा। रास्ते में उसकी सेना के एक राजपूत सिपाही क्षत्रियत्व जाग उठा। अपने आराध्य का मंदिर तोड़ने की योजना की जानकारी होते ही उसका हृदय का विद्रोह कर उठा। उसने सूबेदार के चचेरे भाई व उसके तीन-चार साथियों को मार डाला। वह अंत तक लड़ता रहा और मरते-मरते उसने दो-तीन लोगों को और मार गिराया। अंत में आततायियों ने उसके शव को पेड़ पर लटका दिया।
Dispute History of Gyanvapi 1194-2024 -मंडी ने बनारस में साधुओं के जबरदस्त प्रतिरोध का भी जिक्र किया है। इतिहासकार डा. मोतीचंद्र ने अपनी पुस्तक ‘काशी का इतिहास’ में, तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र सचींद्र पांडेय ने अपने शोधपत्र ‘मध्यकालीन बनारस का इतिहास (1206 से 1761 ईस्वी)’ में ‘द ट्रेवेल्स आफ पीटर मंडी’ में वर्णित इस घटना का उल्लेख किया है। इस जनप्रतिरोध के कारण ही शाहजहां का फरमान मूर्त रूप नहीं ले सका। वहीं औरंगजेब के समय में भी मराठा क्षत्रपों के विरोध और संघर्ष की बातें इतिहास में वर्णित हैं।
साक्ष्य स्वयं हैं सत्य सनातन
प्राचीन इतिहास एवं कला-संस्कृति विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प�
कब किसने तोड़ा मंदिर , किसने कराया निर्माण
11वीं सदी में गहड़वाल शासकों द्वारा प्राचीन मंदिर का पुनः निर्माण ।
12वीं सदी में (1194 -97) में मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुत्तुबुद्दीन ऐबक द्वारा मंदिर तोड़ने का प्रयास
1230 में इल्तुतमिश के शासनकाल में गुजरात के व्यापारी द्वारा मंदिर का निर्माण
1447 में जौनपुर के सुलतान मुहम्मद शाह शर्की का हमला ,
मंदिर तोड़कर बनवाया राजिया बीबी की मस्जिद।