बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल अक्टूबर-नवम्बंर महीने में होना तय है, ठीक इसके पहले राज्य सरकार ने 16 हजार करोड़ रूपये लोन लेने के लिए जा रही है। मात्र तीन महीने के लिए सरकार ने 16 हजार करोड़ रूपये लोन की मांग की है। इसका मतलब राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति अंदर सबुत ही कमजोर हो चुकी है। राज्य के अंदर आद्यौगिक ईकाई कम है, बेरोजगारों की संख्या अधिक है, महंगाई आसमान को छू रही है। समस्याओं की बाढ़ लगी हुई है। फिर भी बिहार में सुषासन चल रही है। नवल किशोर चैधरी, अर्थशास्त्री के इसका विषलेषण पर अधारित रिपोर्ट।
बिहार सरकार विधानसभा चुनाव से पहले 16 हजार करोड़ लोन लेने जा रही है। राज्य सरकार ने जुलाई से सितंबर तक 16 हजार करोड़ कर्ज देने की गुहार रिजर्व बैंक से लगाई है। राज्य की यह मांग पिछले साल से चार हजार करोड़ ज्यादा है। 2024 के जुलाई-सितंबर में बिहार ने मात्र 12 हजार करोड़ रुपये लोन के तौर पर लिए थे।
अक्टूबर में संभावित विधानसभा चुनाव को देखते हुए बिहार सरकार कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणायें की और कई योजनाओं योजनाएं शुरू करने जा रही है। जनता को साधने के लिए पहले किए गए वादों को पूरा करने की भी चुनौती है। राज्य के सीमित राजस्व स्रोतों से इसका समाधान संभव नहीं है। इसलिए लोन लेना लाजिमी है। हालांकि, वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सरकार कानून की तय सीमा में ही कर्ज ले रही है।
बिहार पर ऐसे बढ़ रहा कर्ज
साल कर्ज राशि
2023-24 में 3,32,740 करोड़ रूपये।
2024-25 में 3,62,036 करोड़ रूपये।
3 महीनों में इन पर अच्छी राशि खर्च होनी है
पंचायती राज प्रतिनिधियों का वेतन डेढ़ गुना हुआ है। जीविका कर्मियों का वेतन दो गुना हुआ। 1 करोड़ 11 लाख पेंशनधारियों का सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 से बढ़ाकर 1100 रुपये मासिक किया गया। 94 लाख निर्धन परिवारों को उद्यम के लिए एकमुश्त दो लाख रुपये देने हैं।
साल कर्ज राशि
2025-26 में 4,06,476 करोड रूपये़ (प्रस्तावित) (आंकड़े बजट दस्तावेजों के हैं।)
सरकार को हर दिन 63 करोड़ चुकाना है सूद
2024-25 तक बिहार सरकार 3 लाख 62 हजार 36 करोड़ कर्ज ले चुकी थी। 2025-26 में भी लगभग 44 हजार करोड़ लोन लेने की योजना है। इस तरह वित्तीय वर्ष के अंत तक बिहार पर यह कर्ज 4 लाख 06 हजार 470 करोड़ का हो जाएगा। बिहार सरकार को हर दिन 63 करोड़ रुपये सूद के रूप में चुकाने पड़ेंगे। इसी तरह कर्ज के धन का 22,820 करोड़ भी बिहार सरकार को इस वित्तीय वर्ष में चुकाना है। इसका कुल अंकगणित यह है कि 45,813 करोड़ रूपये साल भर में केवल कर्ज और सूद में ही चले जाएंगे।
सवाल: चुनाव के समय 16 हजार करोड़ लेना कितना सही है कितना गलत?
जवाबः आम तौर पर चुनाव से पहले ज्यादातर फोकस लोकलुभावन राजनीतिक एजेंडों पर ही होता है। इसलिए आशंका गहरा रही है कि सरकार यह पैसा ऐसे कार्यक्रमों पर खर्च करेगी, जिसका दीर्घकालिक फायदा राज्य के विकास में होने की जगह सियासी एजेंडों को साधने में होगा। इससे राज्य पर कर्ज और सूद चुकाने का बोझ अलग बढ़ जाएगा।
सवालः इसका आम आदमी पर क्या असर पड़ेगा?
जवाबः फ्रीबीज पर खर्च से राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता है। इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च के लिए राशि कम हो जाती है और दीर्घकालिक आर्थिक विकास के उपाय नहीं हो पाते हैं। रोजगार के संसाधन बढ़ाने के लिए सरकार के विकल्प सीमित हो जाते हैं।
सवालः तो फिर उपाय क्या है?
जवाबः सरकार फिजूलखर्ची और फ्रीबीज पर रोक लगाकर केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर और रोजगार के संसाधन बढ़ाने के लिए ही कर्ज ले। प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था का आकार बड़ा करे, जिससे कर्ज लेने की नौबत ही नहीं आए। साथ ही प्रदेश में विकास की रफ्तार और तेज हो।