भारतीय राजनीतिक मंचों पर शिष्टाचार की गिरती परछाई

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By Abhishek Kumar

भारतीय राजनीति की धुरी हमेशा से ही विचारधाराओं के टकराव, मतभेदों और विचारों की भिन्नताओं पर टिकी रही है। लोकतंत्र की यही मूलभूत सुंदरता है कि विविध विचारधाराएं जनमानस के बीच अपनी पैठ बनाती हैं। जनता, अपने विवेक से, यह निर्णय करती है कि देश के शासन की बागडोर किसे सौंपी जाए। हालांकि, जब यह वैचारिक संघर्ष व्यक्तिगत विद्वेष और शत्रुता का रूप धारण कर लेता है, तो राजनीति अपने पवित्र उद्देश्य से विचलित हो जाती है। चुनावी प्रचार का मंच, जिसका मुख्य कार्य मतदाताओं को नीतियों और दृष्टिकोणों से अवगत कराना है, यदि व्यक्तिगत आक्षेपों और अभद्र भाषा से भर जाए, तो यह स्पष्ट रूप से लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 भी इस समय एक ऐसे ही नाजुक मोड़ पर खड़ा दिखाई दे रहा है। हाल के वर्षों में, विशेषकर कुछ प्रमुख नेताओं के भाषणों में देखी गई भाषा की तीखी कटुता ने निश्चित रूप से राजनीतिक गरिमा को ठेस पहुंचाई है। दरभंगा में हुई एक घटना, जहां एक खुले मंच से देश के प्रधानमंत्री के प्रति अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया गया, वह केवल एक चुनावी विवाद का मामला नहीं है। यह घटना आगामी समय में भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक संकेत है।

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भारत की राजनीतिक परंपरा में हमेशा से मर्यादा और शिष्टाचार का उच्च स्थान रहा है। चाहे वह जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री का युग रहा हो, या अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी का काल, राजनीतिक विरोध का स्वर कभी भी इतना असभ्य नहीं हुआ कि वह व्यक्तिगत गालियों में तब्दील हो जाए। विपक्ष की भूमिका सरकार की नीतियों की आलोचना करना, वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना और जनता के मुद्दों को उठाना है। परंतु, यदि विपक्ष का संपूर्ण ध्यान केवल नफरत फैलाने और गालियों का प्रयोग करने तक सीमित रह जाता है, तो यह अंततः लोकतंत्र को कमजोर ही करता है।

महात्मा गांधी ने राजनीति को सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित करने पर बल दिया था। आज के राजनीतिक माहौल में, भाषा की मर्यादा का हनन इतना बढ़ गया है कि चुनावी सभाएं अक्सर अभद्र टिप्पणियों और व्यक्तिगत कटाक्षों के अखाड़े में बदल जाती हैं।

राहुल गांधी हाल के वर्षों में अपनी राजनीतिक रणनीति को अधिक आक्रामक बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह एक आम धारणा है कि वर्तमान सरकार की लोकप्रियता को चुनौती देने के लिए विपक्ष को एक सशक्त और आक्रामक रुख अपनाना होगा। हालांकि, आक्रामकता और असभ्यता के बीच एक बहुत महीन रेखा होती है। दरभंगा में प्रधानमंत्री के प्रति जिस प्रकार की अपशब्दों का प्रयोग किया गया, वह न केवल राहुल गांधी की व्यक्तिगत छवि को धूमिल करता है, बल्कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के लिए भी भारी पड़ सकता है।

बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव, जो एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरने की क्षमता रखते थे, अब ऐसा प्रतीत होता है कि वे राहुल गांधी की भाषा का खामियाजा भुगत रहे हैं। जनता यह समझ रही है कि यदि चुनाव केवल व्यक्तिगत हमलों और गालियों तक सीमित हो जाते हैं, तो भविष्य में राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।

चुनावों में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप होना स्वाभाविक है। विपक्ष का यह कर्तव्य है कि वह सरकार की विफलताओं को जनता के सामने रखे। बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को कटघरे में खड़ा करना उचित है। परंतु, जब यह आलोचना व्यक्तिगत अपमान या गाली-गलौज की सीमा पार कर जाती है, तो यह लोकतंत्र के लिए अत्यंत खतरनाक हो जाता है।

दरभंगा की घटना विशेष रूप से इसलिए चिंताजनक है क्योंकि इसमें केवल एक राजनीतिक नेता की आलोचना नहीं हुई, बल्कि प्रधानमंत्री के पद की गरिमा पर भी प्रहार किया गया। प्रधानमंत्री किसी एक दल का नेता मात्र नहीं होता, बल्कि वह संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। जब उसके लिए मंचों से अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, तो यह अप्रत्यक्ष रूप से पूरे लोकतंत्र का अपमान होता है।TNIE import 2017 8 27 original RALLYयह तर्क भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इस्लाम सहित किसी भी प्रमुख धर्म में गाली देने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित नहीं किया गया है। इस्लाम में ‘आदाब’ (शिष्टाचार) और ‘तहजीब’ (संस्कृति) पर विशेष बल दिया जाता है। गाली देना न केवल एक पाप माना जाता है, बल्कि यह व्यक्ति के चरित्र को भी निम्न दिखाता है। कुरान और हदीस दोनों में ही स्पष्ट रूप से यह निर्देशित है कि मनुष्य की जुबान से केवल अच्छे और संयमित शब्द ही निकलने चाहिए।

 

दरभंगा की घटना में, एक ऐसे मंच से गाली का प्रयोग हुआ जिसकी धार्मिक पहचान है। इसने यह गंभीर प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीति अब धर्म की मूलभूत शिक्षाओं को भी अनदेखा करने लगेगी? इस प्रकार की गाली की संस्कृति न केवल राजनीतिक मंचों को खोखला करती है, बल्कि यह समाज के सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करती है।

चुनाव प्रचार के दौरान गालियों का इस्तेमाल केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसका समाज पर सीधा और गहरा प्रभाव पड़ता है। जब नेता अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं, तो उनके समर्थक भी उसी भाषा को अपनाने लगते हैं। इससे समाज में कटुता, नफरत और विभाजन की खाई और गहरी होती जाती है। लोकतंत्र का वास्तविक उद्देश्य समाज को एकजुट करना है, लेकिन गाली-गलौज की राजनीति समाज को तोड़ने का काम करती है।

आज के दौर में, सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से गालियों और व्यक्तिगत आक्षेपों की बाढ़ आई हुई है, उसमें चुनावी मंचों से अभद्र भाषा का प्रयोग आग में घी डालने जैसा है। यह प्रवृत्ति आने वाली पीढ़ियों को यह गलत संदेश दे रही है कि राजनीति का अर्थ केवल अपने विरोधी को नीचा दिखाना है, न कि जनता की वास्तविक समस्याओं का समाधान खोजना।

बिहार भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहां होने वाले चुनाव अक्सर पूरे देश के लिए एक नई राजनीतिक दिशा तय करते हैं। परंतु, यदि बिहार के चुनाव गालियों और व्यक्तिगत हमलों के दलदल में फंस जाते हैं, तो यह निश्चित रूप से चिंता का विषय है।

Abhishek Kumar is the editor of Nutan Charcha News. Who has been working continuously in journalism for the last many years? Abhishek Kumar has worked in Doordarshan News, Radio TV News and Akash Vani Patna. I am currently publishing my news magazine since 2004 which is internationally famous in the field of politics.


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