
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन के दौरान अपनाई गई आक्रामक विदेश नीति की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने विशेष रूप से अमेरिका की “शुल्क और दबाव की राजनीति” को अनुचित बताया। लावरोव का मानना है कि अमेरिका द्वारा भारत और चीन जैसी प्राचीन सभ्यताओं को धमकियों और अल्टीमेटम से डराने का प्रयास करना न केवल अप्रभावी है, बल्कि उल्टा भी पड़ सकता है।
लावरोव ने अमेरिका के इस रवैये पर चिंता व्यक्त की कि वह अन्य देशों पर अपनी नीतियों को थोपने की कोशिश करता है। उन्होंने एक विशिष्ट उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव डाला। अमेरिका ने यह भी आरोप लगाया कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध को आर्थिक रूप से मदद कर रहा है। हालांकि, भारत ने इन आरोपों का खंडन किया है। भारत का कहना है कि उसकी ऊर्जा खरीद नीतियां पूरी तरह से उसके राष्ट्रीय हितों और बाजार की वास्तविक जरूरतों पर आधारित हैं। ये नीतियां किसी भी बाहरी देश के दबाव में नहीं बनाई जातीं।
इसके अतिरिक्त, लावरोव ने अमेरिका की टैरिफ नीतियों की जटिलताओं पर प्रकाश डाला। उनका तर्क है कि ये नीतियां अक्सर उलझाऊ होती हैं। इनके कारण अन्य देश नए ऊर्जा स्रोतों और बाजारों की तलाश करने पर मजबूर हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें अक्सर अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। यह अमेरिकी नीतियों का एक अनपेक्षित परिणाम है।
रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के संबंध में, लावरोव ने स्पष्ट किया कि रूस इन नए प्रतिबंधों से भयभीत नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान रूस को अभूतपूर्व स्तर के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था। उन अनुभवों से रूस ने काफी कुछ सीखा है। इसलिए, वर्तमान प्रतिबंधों का सामना करने के लिए रूस तैयार है।
संक्षेप में, लावरोव का मुख्य तर्क यह है कि अमेरिका द्वारा दबाव बनाने, टैरिफ लगाने और अल्टीमेटम जारी करने जैसी रणनीतियाँ अव्यवहारिक हैं। ये दीर्घकालिक रूप से उल्टा असर करेंगी। उनका मानना है कि भारत और चीन जैसे देशों पर इस तरह की रणनीति काम नहीं करेगी। ये देश अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं। अमेरिका की यह नीति उन्हें अपने सहयोगियों से दूर कर सकती है। यह वैश्विक कूटनीति में अमेरिका की स्थिति को कमजोर कर सकती है।








