दुनिया में शायद ही कोई और देश होगा जो कंगाली पर जश्न मनाता हो, पर पाकिस्तान इस ‘कलंकित’ परंपरा का निर्विवाद चैम्पियन बन चुका है। IMF ने पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर की किश्त दी और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने गर्व से सीना चौड़ा कर इसे ‘उपलब्धि’ बता डाला। यह वही पाकिस्तान है जो आतंक की नर्सरी चला कर दुनिया को बार-बार धमकाने की कोशिश करता है और आज अपने अस्तित्व के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की दया पर ज़िंदा है।
शर्मनाक जश्न, नाकाम नेतृत्व
यह कोई आर्थिक सफलता नहीं, बल्कि पाकिस्तान के हर संस्थान की नाकामी का घोष है। वो मुल्क जो अपने बजट का अधिकांश हिस्सा सेना और आतंकियों को पालने में झोंक देता है, वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार का नामोनिशान नहीं। IMF की मदद पर हर्षित होना उस शराबी की तरह है जो गिरवी रखे घर में मुफ्त की बोतल मिलने पर जश्न मनाता है।
“संतोष” नहीं, आत्मसम्मान मर चुका है!
शहबाज़ शरीफ ने “संतोष” जताया? किस बात का संतोष? क्या राष्ट्र की आर्थिक स्वतंत्रता को गिरवी रखने पर संतोष जताना अब राजनैतिक उपलब्धि बन चुका है? असल में पाकिस्तान का नेतृत्व और सैन्य तंत्र अब इतने भ्रष्ट, कायर और दिवालिया हो चुके हैं कि उन्हें किसी भी वैश्विक तिरस्कार से फर्क नहीं पड़ता।
भारत को सबक नहीं, चेतावनी है
भारत को यह दृश्य केवल तिरस्कार की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी के रूप में देखना चाहिए। जब नेतृत्व सिर्फ सेना और धर्मांधता के भरोसे चलता है, तो उसकी हालत पाकिस्तान जैसी ही होती है—कर्ज़ में डूबा, आतंक का पोषक, और दुनिया में उपहास का पात्र।
IMF का पैसा, चीन का कर्ज़ और जनता की तबाही
IMF से पैसा लेकर पाकिस्तान सरकार अपनी नाकामी ढकने की कोशिश कर रही है, लेकिन असलियत यह है कि यह रकम भी दो महीने में वेतन, पेट्रोल और उधार चुकाने में खत्म हो जाएगी। पाकिस्तान की जनता आज भुखमरी, महंगाई और बेरोज़गारी के दलदल में फंसी हुई है, लेकिन उसका शासक वर्ग हर मंच पर अपनी असफलताओं पर स्याह पर्दा डालने में व्यस्त है।
नतीजा? एक और असफल राष्ट्र की ओर तेज़ी से बढ़ता पाकिस्तान
IMF से मिली इस रकम से न तो पाकिस्तान की आर्थिक हालात सुधरेंगी, न ही उसकी वैश्विक छवि। यह महज कुछ हफ्तों की ऑक्सीजन है उस बीमार राष्ट्र के लिए जिसकी नब्ज़ अब भी आतंक, झूठ और धार्मिक कट्टरता पर टिकी है।