बिहार विधानसभा चुनाव 2025: सत्ता परिवर्तन की दस्तक?

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By Abhishek Kumar

बिहार की राजनीति वर्ष 2025 के विधानसभा चुनाव की ओर तेजी से बढ़ रही है। नीतीश कुमार की सरकार पर लगातार हमले हो रहे हैं, एक ओर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के तेजस्वी यादव हैं तो दूसरी ओर हैं रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर, जो अब “जन सुराज” के साथ बिहार की राजनीति में निर्णायक मोड़ लाने का दावा कर रहे हैं।

प्रशांत किशोर का चुनावी हस्तक्षेप न सिर्फ भाजपा और जदयू की रणनीति को चुनौती दे रहा है, बल्कि यह विपक्ष के लिए भी एक अप्रत्याशित सियासी समीकरण बनता जा रहा है।

प्रशांत किशोर ने राजनीति के गलियारों में अपनी पहचान बतौर एक चुनावी रणनीतिकार बनाई थी। नरेंद्र मोदी से लेकर ममता बनर्जी तक और कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक, प्रशांत किशोर ने लगभग हर प्रमुख दल के लिए कभी न कभी चुनावी गणित बैठाया है। लेकिन अब प्रशांत किशोर एक नई भूमिका में हैं, एक नेता के रूप में।


प्रशांत किशोर ने बिहार की यात्रा कर, जन संवाद को मुख्य हथियार बनाया है। उनका दावा है कि उन्होंने राज्य के हर जिला, हर प्रखंड और गांव में जाकर जनता की समस्याएं सुना है। इस यात्रा के बाद उन्होंने “जन सुराज” को एक राजनीतिक संगठन का रूप दिया है।

प्रशांत किशोर का दावा है कि “जन सुराज बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, बिना किसी गठबंधन के, अपने दम पर सरकार बनाएगी।”

प्रशांत किशोर ने बिहार के सामने जो समस्याएं चिन्हित किया हैं, वह नई नहीं हैं बेरोजगारी, पलायन, भ्रष्टाचार, शिक्षा की बदहाली और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी। लेकिन प्रशांत किशोर का दावा है कि उनके पास इन समस्याओं का ठोस और व्यावहारिक समाधान है।

बिहार में केवल 23 लाख सरकारी नौकरियां हैं, जो आबादी का सिर्फ 2% है। 98% लोगों के लिए निजी क्षेत्र, स्वरोजगार और उद्योग ही एकमात्र विकल्प हैं। प्रशांत किशोर का कहना है कि “सरकारी नौकरी देकर पलायन नहीं रोका जा सकता है। इसके लिए बिहार को शिक्षा और पूंजी का केंद्र बनाना होगा।” बिहार से मजदूर, छात्र, बुद्धिजीवी और पूंजी, सभी पलायन कर रहे हैं। जन सुराज का दावा है कि यदि सरकार ईमानदारी से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए पूंजी सुलभ करे, तो एक साल में पलायन की रफ्तार थम सकता है।

प्रशांत किशोर ने कहा है कि उनके साथ 10 प्रसिद्ध अर्थशास्त्री काम कर रहे हैं, जिन्होंने बिहार के लिए एक विशेष आर्थिक मॉडल तैयार किया है।

प्रशांत किशोर अपने भाषणों और जनसभाओं में भाजपा, जदयू और तेजस्वी यादव, सभी को एक साथ लपेट लेते हैं। वे तथ्यों और आंकड़ों के साथ बात करते हैं, जिससे उनका संवाद जनता में प्रभाव छोड़ता है।

“मुख्यमंत्री ने गरीबों को दो लाख रुपये देने का वादा किया था, एक भी परिवार को अब तक पैसा नहीं मिला।” “नीतीश कुमार की सरकार में सिर्फ जातीय आंकड़े बदलने की राजनीति हुई है।”

भाजपा पर सीधा वार करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा है कि “अब बीजेपी भी पीली टोपी पहन रही है क्योंकि उन्हें पता है जनता अब हमारे साथ है।” उन्होंने कहा है कि “पीएम मोदी ने 15 लाख की बात कही थी, नीतीश कुमार ने दो लाख की — दोनों झूठे वादे निकले।”

सम्राट चौधरी और मंगल पांडे पर निशाना साधते हुए कहा है कि “सम्राट चौधरी मेरे भाई हैं, लेकिन भाई-भतीजावाद नहीं चलेगा। गलती की है तो सामने आएंगे।” “मंगल पांडे पर किस्तों में खुलासे होंगे।”

प्रशांत किशोर ने भू-सर्वे और भ्रष्टाचार पर कहा है कि बिहार में 2013 से भू-सर्वे शुरू हुआ, लेकिन अब तक सिर्फ 20% जमीन की मापी हो सकी है।  CO और DCLR की पोस्टिंग में 25-50 लाख की रिश्वत ली जा रही है। सर्वे का काम धन उगाही का उद्योग बन गया है।

उन्होंने कहा है कि 2006 में वादा किया गया था कि महादलितों को 3 डिसमिल जमीन दी जाएगी।आज तक सिर्फ 2.34 लाख परिवारों को जमीन दी गई है, जिनमें से 1.2 लाख को आज तक कब्जा नहीं मिला है।

नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना करवाई और उसके आधार पर आरक्षण बढ़ाने का दावा किया। लेकिन केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव नहीं भेजा गया। तांती-तंतवा समुदाय को एससी का दर्जा देने की घोषणा तो हुई, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। जातियों का वर्गीकरण सिर्फ चुनावी लाभ के लिए किया गया।

तेजस्वी यादव अपने बयानों से नीतीश सरकार को घेरने में लगे हैं। वे बेरोजगारी, अपराध और शिक्षा की दुर्दशा को मुद्दा बना रहे हैं। लेकिन उनका खुद का पारिवारिक विवाद आरजेडी के लिए चुनौती बनता जा रहा है। तेज प्रताप ने “टीम तेज प्रताप” बनाकर महुआ सीट से निर्दलीय लड़ने की घोषणा की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने परिवार और पार्टी को अनफॉलो कर दिया है। वे पीले रंग को अपनी पहचान बता रहे हैं, जो प्रशांत किशोर की जन सुराज का भी रंग है।

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद ने संगठन में बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने राबड़ी देवी, जगदानंद सिंह, महबूब अली कैसर, उदय नारायण चौधरी, इन चारों को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है। सभी वर्गों को संतुलन के साथ प्रतिनिधित्व दिया गया है, सवर्ण, दलित, मुसलमान और यादव। लेकिन प्रश्न यह है कि तेजस्वी-तेज प्रताप का आंतरिक टकराव क्या आरजेडी की साख को नुकसान नहीं पहुंचाएगा?

भाजपा ने दिलीप जायसवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक सवर्ण चेहरे को आगे किया है। लेकिन राज्य में पार्टी की पकड़ कमजोर माना जा रहा है। वहीं चिराग पासवान एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद नीतीश सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।

चिराग पासवान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हैं लेकिन उन्हीं के साथ गठबंधन में बने हुए हैं। मंत्री बने रहने की चाहत उनके राजनीतिक विरोध को कमजोर बनाती है।

बिहार में तीनध्रुवीय मुकाबला बनता दिख रहा है, एनडीए (भाजपा + जदयू + लोजपा रामविलास), महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल) और जन सुराज (प्रशांत किशोर का अकेला अभियान)।

देखा जाए तो पढ़ा-लिखा युवा वर्ग प्रशांत किशोर की ओर झुक सकता है। वहीं मुस्लिम-दलित वोटबैंक आरजेडी के साथ रहने की संभावना है। नीतीश कुमार के कुशल प्रशासन के दावों पर अब जनता भरोसा कम कर रही है।

बिहार की सियासत इस बार सिर्फ जाति, धर्म और गठबंधन पर नहीं चलेगी। जनता रोजगार, शिक्षा, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे ठोस मुद्दों पर सोच रही है। ऐसे में प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान यदि जनता को यह भरोसा दिला पाए कि वे वाकई समाधान ला सकता है, तो 2025 के चुनाव में बड़ा उलटफेर संभव होगा।

जबकि, प्रशांत किशोर को अभी संगठनात्मक ढांचा, उम्मीदवारों की तैयारी और जमीनी पकड़ को और मजबूत करना होगा। वहीं आरजेडी को आंतरिक कलह से उबरना होगा, और भाजपा-जदयू को अपनी साख दोबारा बनाना होगा।

2025 का बिहार चुनाव निर्णायक होगा, सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं, बल्कि यह तय करेगा कि क्या बिहार एक बार फिर विकास की मुख्यधारा में लौट सकता है। और इस बदलाव के केंद्र में हो सकता है एक नया नाम प्रशांत किशोर का हो।

Abhishek Kumar is the editor of Nutan Charcha News. Who has been working continuously in journalism for the last many years? Abhishek Kumar has worked in Doordarshan News, Radio TV News and Akash Vani Patna. I am currently publishing my news magazine since 2004 which is internationally famous in the field of politics.


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