क्या 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति परिवर्तन हो रहा है? जानिए कैसे चीन पश्चिमी देशों की बढ़त को चुनौती दे रहा है और भारत के लिए इसका क्या अर्थ है।
क्या 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति का केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर शिफ्ट हो रहा है?
21वीं सदी में वैश्विक शक्ति परिवर्तन एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक बदलाव बनकर उभरा है। जहां 20वीं सदी में अमेरिका और पश्चिमी देश वैश्विक संस्थाओं, अर्थव्यवस्था और सैन्य गठबंधनों पर हावी थे, वहीं अब एशिया, विशेष रूप से चीन, एक नई महाशक्ति के रूप में उभर रहा
चीन का उदय: शक्ति का पूर्व की ओर झुकाव
चीन की चार दशकों में हुई आर्थिक प्रगति ने उसे विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया है। लेकिन चीन की महत्वाकांक्षाएं केवल आर्थिक नहीं हैं। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे परियोजनाओं के माध्यम से वह एशिया, अफ्रीका, यूरोप और लैटिन अमेरिका तक अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
तकनीकी क्षेत्र में भी चीन तेजी से आगे बढ़ा है। Huawei की 5G तकनीक, TikTok जैसे ऐप्स का वैश्विक प्रभाव, और डिजिटल युआन की शुरुआत यह दर्शाती है कि चीन अमेरिका के तकनीकी व वित्तीय प्रभुत्व को सीधी चुनौती दे रहा है।
अमेरिका की नेतृत्व क्षमता पर संकट
दूसरी ओर, अमेरिका को आंतरिक राजनीतिक ध्रुवीकरण, बढ़ते राष्ट्रीय कर्ज और अस्थिर विदेश नीति जैसे गंभीर मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। हाल के वर्षों में कई निर्णय – जैसे इराक युद्ध, पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना (और फिर वापसी), और व्यापार पर बदलती नीतियां – विश्व में अमेरिका की छवि को कमजोर कर चुके हैं।
अब जब चीन निरंतर और दीर्घकालिक रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है, तो अमेरिका की नेतृत्वकारी भूमिका पहले जैसी मजबूत नहीं दिखती।
भारत के लिए रणनीतिक संतुलन का समय
भारत के लिए यह समय रणनीतिक संतुलन साधने का है। उसे न तो अमेरिका का पूर्ण सहयोगी बनना है, और न ही चीन का अनुयायी। भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विदेश नीति हो सकती है।
भारत को अमेरिका के साथ रक्षा और व्यापार में सहयोग करना चाहिए, लेकिन साथ ही चीन के साथ क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के प्रयास भी करने चाहिए।
निष्कर्ष: भविष्य का सवाल
आगामी वर्षों में सबसे बड़ा सवाल शायद यह नहीं होगा कि “अमेरिका क्या करेगा?” बल्कि यह होगा – “चीन क्या सोच रहा है?”
वैश्विक शक्ति परिवर्तन अब एक वास्तविकता बन चुका है। पूर्वी देशों की बढ़ती भूमिका यह संकेत देती है कि 21वीं सदी में दुनिया का शक्ति संतुलन एक नए युग में प्रवेश कर चुका है – और भारत को इसमें अपना स्थान बुद्धिमानी से तय करना होगा।