आर्कटिक और अंटार्कटिका, दुनिया की सबसे ठंडी, निर्जन और दुर्गम जगहें। यहां न संचार टावर होते हैं, न ही इंटरनेट की पहुंच। ऐसी जगहों पर जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है या वैज्ञानिक शोधकर्ता फंसे होते हैं, तो उनसे संपर्क साधना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब, इन बर्फीली सर्द हवाओं में छुपे हुए बुलबुले, हवा के छोटे-छोटे कण, एक नई उम्मीद बनकर उभरे हैं।
बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ‘एयर बबल मैसेजिंग सिस्टम’ की मदद से एक नई तकनीक विकसित की है, जिससे बर्फ में बने बुलबुलों के ज़रिए संदेश भेजे जा सकते हैं। विज्ञान की यह उपलब्धि न सिर्फ भविष्य के गोपनीय संचार को आसान बनाएगी, बल्कि यह संकट की घड़ी में जीवन रक्षक साबित हो सकता है।
अंटार्कटिका में तापमान -80 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, वहीं आर्कटिक में भी सर्द हवाएं कंपकंपी छुड़ा देती हैं। यहां सामान्य स्मार्टफोन, रेडियो डिवाइस और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जम जाते हैं, बैटरी काम करना बंद कर देता है और संचार एकदम ठप हो जाता है। न टावर, न तार, न वाई-फाई।
आपातकालीन स्थितियों में रेस्क्यू टीमों को वैज्ञानिकों या मिशन दल से संपर्क करना होता है। दूरदराज इलाकों में कोई घटना हो, तो जानकारी भेजना नामुमकिन हो जाता है। परंपरागत संचार उपकरणों की ऊर्जा की मांग अधिक होती है, जो इन स्थानों पर चुनौतीपूर्ण है।
बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने एक सरल लेकिन चमत्कारी विचार पर काम किया है, जमते समय पानी में बनने वाले बुलबुलों को नियंत्रित करके सूचना को कोड में बदलना। यह खोज Cell Reports Physical Science जर्नल में प्रकाशित हुई है।
जब पानी जमता है, तो उसमें घुली गैसें छोटे-छोटे बुलबुले बनाकर फंस जाती हैं। वैज्ञानिकों ने पानी की एक पतली परत को दो पारदर्शी प्लास्टिक शीट के बीच रखा। इसे विशेष तापमान पर जमाया गया। फ्रीजिंग स्पीड को बदलकर तय किया गया कि कहां बुलबुला बनेगा और कहां नहीं। जिन हिस्सों में बुलबुला था, उसे ‘1’ माना गया और जहां नहीं था, उसे ‘0’। इस तरह एक बाइनरी कोड तैयार हुआ।
कैमरे से इस बर्फीले टुकड़े की फोटो ली जाती है। एक सॉफ्टवेयर उस फोटो को स्कैन करता है और जहां बुलबुला दिखते हैं, वहां ‘1’ पढ़ता है, और अन्य जगहों पर ‘0’। इस तरह एक पूरा मैसेज बर्फ के टुकड़े में दर्ज हो जाता है, न कोई वायर, न इंटरनेट।
पारंपरिक संचार माध्यम जैसे सैटेलाइट, रेडियो, फोन को बैटरी या बिजली की जरूरत होती है। यह बबल मैसेजिंग सिस्टम किसी भी ऊर्जा स्रोत पर निर्भर नहीं करता, यह महज पानी, ठंडा तापमान और कैमरा चाहता है। बर्फ में छिपा संदेश न तो किसी नेटवर्क पर होता है और न ही कोई हैक कर सकता है। बिना सही डिकोडिंग सॉफ्टवेयर के कोई समझ ही नहीं सकता है कि बर्फ का टुकड़ा असल में एक संदेश है। बर्फ में बंद ये बुलबुले वर्षों तक सुरक्षित रह सकते हैं, बशर्ते तापमान नियंत्रण में हो। यह तकनीक संग्रहण के लिए भी अत्यंत उपयोगी है, जैसे कि पुरालेख या गुप्त सैन्य दस्तावेज।
आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जहां कोई उपकरण काम नहीं करता है, वहां बबल मैसेजिंग से लोकेशन या मदद की मांग भेजा जा सकता है। बर्फीले तूफान में फंसे वैज्ञानिक, बर्फ की एक परत को संदेश में बदलकर हेलिकॉप्टर से उड़ती टीम को संकेत दे सकता हैं।
सरकारें या एजेंसियां, जिन्हें किसी दस्तावेज को बिना डिजिटल ट्रेस के सुरक्षित रखना हो, वे इसे बबल कोड में बदलकर आर्कटिक लैब्स में स्टोर कर सकता हैं। सीमाओं पर या दुर्गम पहाड़ी इलाकों में जहां डिजिटल उपकरण ट्रैक किए जा सकते हैं, वहां यह कोड सुरक्षित और गोपनीय संदेशों के आदान-प्रदान के लिए वरदान है।
भविष्य में मंगल या चंद्रमा मिशन पर जहां तापमान चरम पर होता है, वहां यह बबल टेक्नोलॉजी एक सस्ते, टिकाऊ और ऊर्जा रहित संचार विकल्प के रूप में काम आ सकता है।
अभी यह तकनीक केवल ठंडे क्षेत्रों में ही प्रभावी है, जहां तापमान 0°C से नीचे होता है। गर्म जलवायु वाले देशों में इसका सीधा उपयोग नहीं हो सकता है जब तक कृत्रिम रूप से फ्रीजिंग सिस्टम न हो। हर संदेश में सीमित अक्षर ही भेजे जा सकते हैं, क्योंकि एक बर्फीले टुकड़े में ज्यादा डेटा स्टोर करना संभव नहीं है। लेकिन वैज्ञानिक इस पर काम कर रहे हैं कि कैसे एक से ज्यादा परतें बनाकर, थ्री-डायमेंशनल मैसेजिंग संभव बनाई जाए।
अब वैज्ञानिक बबल्स के आकार, प्रकार और रंग पर काम चल रहा हैं ताकि इससे जटिल कोडिंग किया जा सके। अगला प्रयोग “Oily bubbles” (तेल आधारित बुलबुले) और विभिन्न गैसों जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन आदि के साथ किया जाएगा ताकि इसकी कार्यक्षमता बढ़ सके।
कभी कल्पना नहीं की गई थी कि जमी हुई हवा के बुलबुले संवाद करेंगे। जब प्रकृति की चुप्पी, विज्ञान के स्पर्श से बोल उठेगी? यह तकनीक केवल एक वैज्ञानिक खोज नहीं है, बल्कि मानव की अद्भुत क्षमता का प्रमाण है, कि वह मौन से भी शब्द निकाल लेता है, जमी हुई सांसों से भी सन्देश भेज सकता है।
बर्फ में फंसे बुलबुलों को पढ़कर संदेश भेजने की यह तकनीक हमें यह सिखाती है कि समाधान वहां भी मिल सकता है, जहां सबकुछ ‘जम’ चुका हो। संचार की यह नई लहर, ऊर्जा-बचत, गोपनीयता और विज्ञान की सरलता का सुंदर संगम है। यह न सिर्फ ठंडे इलाकों के लिए, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। भविष्य में हो सकता है कि फ्रीज की ट्रे में रखी बर्फ की सिल्ली कोई पुराना प्रेम पत्र हो या किसी वैज्ञानिक का कोडेड संदेश।