21वीं सदी में अगर किसी संकीर्ण जलमार्ग की चर्चा वैश्विक राजनीति, सैन्य रणनीति और ऊर्जा संकट के केंद्र में रही है, तो वह है ‘होर्मुज स्ट्रेट’। फारस की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ने वाला यह जलडमरूमध्य न सिर्फ दुनिया का सबसे व्यस्ततम तेल परिवहन मार्ग है, बल्कि भू-राजनीतिक संकटों का स्थायी मंच भी बन गया है।
2025 में जब ईरान के परमाणु संयंत्रों, फोर्डो, नतांज और इस्फहान, पर अमेरिकी मिसाइल हमला हुआ, तो ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने की धमकी दे डाली। ईरानी संसद ने इसे “राष्ट्र की सुरक्षा” का मामला बताते हुए समर्थन भी दे दिया। लेकिन क्या यह इतना आसान है? और अगर हो जाए, तो भारत समेत पूरी दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?
होर्मुज स्ट्रेट फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और फिर हिंद महासागर से जोड़ता है। इसके उत्तर में ईरान और दक्षिण में यूएई और ओमान स्थित हैं। इसकी कुल लंबाई करीब 161 किमी और सबसे संकीर्ण बिंदु पर यह मात्र 33 मील चौड़ी है। इसमें से जहाजों के लिए सुरक्षित आवागमन की चौड़ाई दोनों दिशाओं में सिर्फ 3.21 किलोमीटर है। यह जलडमरूमध्य कोई सामान्य समुद्री मार्ग नहीं है बल्कि यह दुनिया के एक चौथाई तेल और गैस का वाहक है। हर दिन लगभग 17 से 20 मिलियन बैरल कच्चा तेल इस मार्ग से गुजरता है। एलएनजी (Liquified Natural Gas) के लिए भी यह प्रमुख मार्ग है।
भारत के संदर्भ में होर्मुज स्ट्रेट का महत्व अत्यधिक रणनीतिक है। भारत अपने कुल तेल आयात का 60-65% इस जलमार्ग के जरिए मंगाता है। भारत प्रतिदिन लगभग 55 लाख बैरल तेल की खपत करता है, जिसमें से करीब 15 लाख बैरल होर्मुज मार्ग से आता है। भारत का एलएनजी आयात भी बड़े पैमाने पर इसी रास्ते से होता है, लगभग 45-50%। भारत जिन देशों से सबसे ज्यादा तेल मंगाता है, सऊदी अरब, इराक, कुवैत, यूएई और ईरान, वे सभी फारस की खाड़ी के देश हैं। यानि होर्मुज स्ट्रेट बंद होने की स्थिति में भारत की ऊर्जा सुरक्षा को गंभीर झटका लगेगा, तेल महंगा होगा, महंगाई बढ़ेगी और रुपये पर दबाव आएगा।
2024 में रोजाना करीब 165 लाख बैरल तेल और एलएनजी इसी मार्ग से गए। चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देश इस पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं। ईरान, कुवैत, कतर, बहरीन, इराक के पास समुद्र तक पहुंच का यही एकमात्र मार्ग है। सऊदी अरब और यूएई के पास कुछ पाइपलाइन विकल्प हैं, पर वह सीमित क्षमता के हैं।
अमेरिका का पांचवां बेड़ा (5th Fleet) बहरीन में तैनात है, जो इस क्षेत्र की निगरानी करता है। नाटो और अन्य पश्चिमी नौसेनाएं भी होर्मुज क्षेत्र में गश्त करती रहती हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून (1982 की संयुक्त राष्ट्र समुद्री संधि) के अनुसार, होर्मुज स्ट्रेट एक अंतरराष्ट्रीय जलमार्ग है। इसका मतलब है कि किसी भी देश के पास इसे एकतरफा बंद करने का अधिकार नहीं है। ईरान बार-बार कहता रहा है कि “अगर हम तेल नहीं बेच सकते, तो कोई नहीं बेचेगा।” ईरान अपनी तेज, छोटी नौकाओं, ड्रोन, टॉरपीडो और भूमि से समुद्र में मार करने वाली मिसाइलों से आवागमन बाधित कर सकता है।
समुद्र में बारूदी सुरंगें बिछाना, तेल टैंकरों को निशाना बनाना। ड्रोन और हेलीकॉप्टर हमले, मिसाइल से टैंकरों पर निशाना। नाविकों को बंधक बनाना, साइबर हमले और समुद्री राडार जाम करना। हालांकि, पूर्णत: बंद करना कठिन होगा, लेकिन जहाजों को डराकर, बीमा दरें बढ़ाकर, और आवागमन जोखिमपूर्ण बनाकर ईरान प्रभावी रूप से होर्मुज को “आंशिक रूप से पंगु” कर सकता है।
अमेरिका के लिए होर्मुज की सुरक्षा “Red Line” मानी जाती है। 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने ऑपरेशन प्रेयिंग मंटिस चलाकर ईरानी नौसेना को पीछे हटने पर मजबूर किया था। ईरान पर और कड़े आर्थिक प्रतिबंध। युद्ध की स्थिति में ईरान का तेल निर्यात ठप। चीन और रूस की राजनयिक मुश्किलें बढ़ेंगी।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्क रुबियो ने होर्मुज बंद करने की धमकी को ईरान की “आर्थिक आत्महत्या” बताया है, क्यों? ईरान के कुल विदेशी राजस्व का 80% तेल-गैस निर्यात से आता है। होर्मुज बंद होने से ईरान खुद भी तेल निर्यात नहीं कर पाएगा।
चीन, जो ईरान का सबसे बड़ा तेल ग्राहक है, अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर चिंतित होगा। कतर, सऊदी अरब, कुवैत जैसे पड़ोसी देश भी नाराज होंगे, जिनके उत्पाद भी इसी मार्ग से जाते हैं। ईरान में पहले से मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और सामाजिक अशांति है। होर्मुज बंदी से आर्थिक हालात और बिगड़ेंगे।
भारत के सामने एक जटिल स्थिति होगी कि तेल की कीमतें $150 प्रति बैरल तक जा सकता हैं। महंगाई, फ्यूल सब्सिडी बढ़ना, राजकोषीय घाटा, भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी भी है, भारत और ईरान से पारंपरिक रिश्ते भी। चाबहार पोर्ट और INSTC प्रोजेक्ट भी दांव पर हैं। रूस, अमेरिका, ब्राजील से तेल आयात। LNG के लिए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से समझौता, विकल्प तलाशने की कोशिश रहेगी।
तेल कंपनियां की बीमा दरें बढ़ेंगी, जोखिम भत्ता जुड़ेगा। शेयर बाज़ार में भारी उतार-चढ़ाव। ग्लोबल सप्लाई चेन में जहाजरानी में देरी, माल ढुलाई महंगी। संबंधित सेक्टर में एविएशन, परिवहन, रसायन, कृषि पर असर पड़ेगा।
होर्मुज स्ट्रेट बंद करना कागज पर जितना आसान दिखता है, व्यावहारिक तौर पर उतना ही जटिल और आत्मघाती है, खासतौर पर ईरान के लिए। यह न सिर्फ वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा पर, बल्कि स्वयं ईरान की अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी आघात करेगा। एक बात तय है कि होर्मुज के हर लहर में भू-राजनीतिक हलचल छिपी है, और भविष्य में यह जलडमरूमध्य शायद तेल से अधिक राजनीतिक बारूद से भरा होगा।